
सातवें वेतन आयोग (7th Pay Commission) की सिफारिशें लागू होने के साथ ही केंद्रीय कर्मचारियों के संगठनों ने न्यूनतम वेतनमान और फिटमेंट फॉर्मूला पर आपत्ति जताई थी और अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की तारीख घोषित कर दी थी. बाद में सरकार ने कर्मचारी नेताओं से बातचीत कर चार महीने का समय मांगा था और फिर दोनों पक्षों के बीच बातचीत का दौर शुरू हुआ.
लेकिन, अब कर्मचारी नेताओं ने वित्तमंत्री अरुण जेटली को चिट्ठी लिखकर अपनी बातें साफ तौर पर रख दी हैं. अपनी चिट्ठी में कर्मचारी नेताओं ने 30 जून 2016 को वित्तमंत्री अरुण जेटली से हुई बातचीत का हवाला भी दिया है. कर्मचारी नेताओं ने कहा है कि उस समय 11 जुलाई 2016 को प्रस्तावित कर्मचारियों की हड़ताल को टालने के लिए सरकार की ओर से यह प्रयास किया गया था.
वित्तमंत्री जेटली, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, रेल मंत्री सुरेश प्रभु और केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के साथ इस बैठक में कर्मचारी नेताओं ने साफ कहा था कि सातवें वेतन आयोग (7th Pay Commission) में न्यूनतम वेतनमान और फिटमेंट फॉर्मूले से कर्मचारी बुरी तरह आहत हैं.
कर्मचारी नेताओं ने सरकार को याद दिलाया कि सरकार के मंत्रियों ने कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधियों से बातचीत में कहा था कि वे कर्मचारियों की चिंताओं को दूर करने का प्रयास करेंगे और तब कर्मचारी संगठनों ने अपनी अनिश्चितकालीन हड़ताल को चार महीने के लिए टाल दिया था.
फलस्वरूप सरकार ने एक समिति का गठन किया जो न्यूनतम वेतनमान और फिटमेंट फॉर्मूले का समाधान चार महीने में निकालती. कर्मचारी नेताओं ने एडिश्नल सेक्रेटरी पीके दास की अध्यक्षता में गठित इस समिति के साथ बैठक की. कर्मचारी नेताओं का कहना है कि 24 अक्टूबर को इस समति के साथ हुई बैठक के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार कर्मचारी की मांग को लेकर संजीदा नहीं है और यह समिति मामले पर गंभीर रुख नहीं रखती और टाल-मटोल कर रही है. समिति के साथ मुद्दे पर हुई अब तक की बातचीत से कर्मचारी काफी हताश है.
इसी के साथ कर्मचारी नेताओं ने सरकार से मांग की है कि वह समिति को आदेशित करे कि मामले पर कोई रास्ता निकाला जाए जो दोनों ओर को स्वीकृत हो. नेताओं ने कहा कि समिति तय सीमा के भीतर कर्मचारियों से जुड़ी मांगों का हल निकाले.
ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के सेक्रेटरी जनरल शिवगोपाल मिश्रा ने बताया कि इसी के साथ कर्मचारी नेताओं ने सरकार को साफ कर दिया है कि यदि सरकार की ओर से कोई ठोस प्रस्ताव इन मुद्दों पर नहीं आया तो कर्मचारी आंदोलन की राह पर चलने को मजबूर होंगे.
न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा क्यों है पेचीदा
कई ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब का सभी को इंतजार है. न्यूनतम वेतनमान बढ़ाने की मांग के चलते अब क्लास वन, क्लास टू, थ्री और फोर श्रेणी के केंद्रीय कर्मचारियों में भी इस वेतन आयोग (7th Pay commission) की सिफारिशों को लेकर हुए वास्तविक बढ़त को लेकर तमाम प्रश्न हैं.
सभी लोगों को अब इस बात का इंतजार है कि सरकार कौन से फॉर्मूले के तहत यह मांग स्वीकार करेगी. सभी अधिकारियों को अब इस बात का बेसब्री से इंतजार है. ऐसे में कई अधिकारियों का कहना है कि हो सकता है कि न्यूनतम वेतन बढ़ाए जाने की स्थिति में इसका असर नीचे से लेकर ऊपर के सभी वर्गों के वेतनमान में होगा. कुछ अधिकारी यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि हो सकता है कि इससे वेतन आयोग (7th pay commission) की सिफारिशों से ज्यादा बढ़ोतरी हो जाए. ऐसा होने की स्थिति में सरकार पर केंद्रीय कर्मचारियों को वेतन देने के मद में काफी फंड की व्यवस्था करनी पड़ेगी और इससे सरकार पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.
वहीं, कुछ अन्य अधिकारियों का यह भी मानना है कि सरकार न्यूनतम वेतनमान बढ़ाए जाने की स्थिति में कोई ऐसा रास्ता निकाल लाए जिससे सरकार पर वेतन देने को लेकर कुछ कम बोझ पड़े. कुछ लोगों का कहना है कि सरकार न्यूनतम वेतनमान में ज्यादा बढ़ोतरी न करते हुए दो-या तीन इंक्रीमेंट सीधे लागू कर देगी जिससे न्यूनतम वेतन अपने आप में बढ़ जाएगा और सरकार को नीचे की श्रेणी के कर्मचारियों को ही ज्यादा वेतन देकर कम खर्चे में एक रास्ता मिल जाएगा. सवाल उठता है कि क्या हड़ताल पर जाने वाले कर्मचारी संगठन और नेता किस बात को स्वीकार करेंगे.
Source: NDTV
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